रविवार, 19 दिसंबर 2010

"DURGHATNA"

आज सुबह जैसे ही अखबार पर नज़र गई,
समाचार पढ़कर ही रूह कांप गई,
लिखा था .....
दुर्घटनाग्रस्त युवक तीन घंटे तक राह में पड़ा रहा, 
पुलिस व जनता सिर्फ देखती रही,
"क्या हो गया है, इंसानियत को,
कहाँ खो गई है मानवता,
गर वक़्त पर ईलाज हो  जाता,
तो शायद वह बच जाता,
भगवान न करे कहीं ऐसा होता,
वो तुम्हारा कोई अपना होता ........... "

8 टिप्‍पणियां:

  1. aaj ka samay kalyug ka hai...
    manavta to naam hi hai......dusro ki dukhi dekhkar kush hote hai log...

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  2. धन्यवाद् संजय जी आपकी प्रतिक्रिया के लिए , सच है मन द्रवित हो उठता है,
    ऐसा लगता है काश हम वहां होते और कुछ कर पाते ...!

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  3. आज मानवता रही कहाँ है...सब अपने स्वार्थों में लिप्त हैं.

    ऐसे ही कुछ भाव मैंने अपनी रचना इंसानियत की मौत में व्यक्त किया है :
    सड़क दुर्घटना में मरनेवालों की
    संख्या एक और बढ़ गयी,
    लेकिन गिनती नहीं हुई
    उस इंसानियत की
    जो उसके साथ ही मर गयी.

    word verification हटाने से कमेंट्स देने में पाठकों को सुविधा रहेगी .

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  4. कैलाश शर्माजी आपका कमेन्ट देखकर बहुत अच्छा लगा/ आपके सुझाव के लिए बहुत - बहुत धन्यवाद ..

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  5. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 21 अप्रैल 2018 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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  6. बात विचारणीय भी है अनुकरणीय भी | कतना अच्छा हो यदि सब इस पर अमल करें | आज कोई है कल हम या हमारा कोई भी उसकी जगह हो सकता है | हर
    जीवन अनमोल है | शुभ कामना |

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