बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

मेरे गीतों का आधार... संध्या शर्मा


क्या बिना अभिव्यक्ति के

प्यार प्यार नहीं होता

क्यों इतना मुश्किल है

प्रेम को दर्शाना

क्यों न अंतर में

इस प्रेम को जियें

आखों से कहें

आँखों की सुनें...





आँचल उड़ा

नभ से बादल गिरा

आह छन गई

प्रीत बन गई

भावनाएं गहरी

अबीर बन गई

गीत बरसे

स्वर झनझनाने लगे

बिन बाती, तेल

दीप जगमगाने लगे...






जब तेरा है साथ  

मन में विश्वास है

मेरे गीतों को

आधार है तेरा 

बिन तेरे जीवन

निराधार है मेरा 

जैसे पराग फूलों का

श्रंगार है घनेरा

आएगा कभी

फ़िर नया सवेरा...

00-00  


रविवार, 26 फ़रवरी 2012

माफ़ नहीं करना मुझे.... संध्या शर्मा

आई थी तू
मेरे आँचल में
अभागिन मैं
तुझे देख भी न सकी
आज भी गूंजती है
तेरी मासूम सी आवाज़
मेरे कानो में
वह माँ- माँ की पुकार
बस सुना है तुझे
कुछ भी न कर सकी
नियति कहूँ
किस्मत कहूँ
या अपनी भूल
क्या कहूँ
कुछ कह भी नहीं सकती
यह भी नहीं कह सकती
तू दुनिया में नहीं आई
आई थी तू
स्वागत न कर सकी तेरा
ममता नहीं उड़ेली तुझपर
जाने दिया दुनिया से तुझे
तू चली गई
बहुत दूर.........!
पुकारती रही मुझे
भूल न सकूंगी तुझे
हर पल याद करती हूँ
बहते हैं आंसू
छलकता है आँचल
वादा है तुझसे
अगला जन्म लूंगी
फिर जन्म दूँगी तुझे
छुपा लूंगी आँचल में
लुटाउंगी ममता तुझपर
जो जी चाहे सजा देना
मुझे पल-पल सताना
मेरी ममता को तरसाना
जितना जी चाहे रुलाना
पर माफ़ नहीं करना मुझे.... 
                      

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

मैं धरती सी ……………… संध्या शर्मा


जुगनु सा है जीवन मेरा
क्षण में बुझती जलती हूँ
मन भर प्रकाश फ़ैलाने
नित जोत सी जलती हूँ

                                               सूरज ढलता पश्चिम में
                                              मै चौबारे पर ढलती हूँ

हूं माटी का एक घरोंदा
नश्वर जग की राही हूँ
नही रही चाह महल की
सिर्फ़ तेरी चाहत चाही हूँ
सूरज ढलता पश्चिम में
मै चौबारे पर ढलती हूँ

                                                जुगनु सा है जीवन मेरा
                                                क्षण में बुझती जलती हूँ

तन्हाई में बैठ अकेले
बीज प्यार के बोती हूँ
कैसे गाऊँ गीत सुहाने
सूली सेज पे सोती हूँ
नियति यही रही मेरी
धरती जैसे चलती हूँ

                                             मन भर प्रकाश फ़ैलाने
                                              नित जोत सी जलती हूँ

हरा भरा प्रीत का झरना
बहे सुवास अमराई में
कांटे चुन लूं राह के तेरी
संग हूँ जग की लड़ाई में
दिवस ढलता चंदा ढलता
मै यामिनी सी जगती हूँ

                                           नियति यही रही मेरी
                                         धरती जैसे चलती हूँ

शनिवार, 11 फ़रवरी 2012

अभियान नए- बलिदान नए... संध्या शर्मा

सकल भुवन के आँगन गूंजे,
आलोकित मंगल - गान नए .
कोटि-कोटि जन मिलजुल छेड़ें,
एकता के अभियान नए .
कैसी थी वह हिम्मत अपनी,
कौन सा था वह अद्भुत बल .
छुपे थे जिसमे सब प्रश्नों के,
सीधे सच्चे सुन्दर हल .

जिसने गुलामी की बेडी को,
काट हमें आज़ाद किया .
नए सिरे से उजड़े गुलशन को,
फिर जिसने आबाद किया .
वक़्त मांगता उसी शक्ति से,
फिर हमसे बलिदान नए .
बेशक पूरब - पश्चिम जायें,
उत्तर- दक्षिण की धारा जोड़ें .
जाल बिछा लम्बी सड़कों का,
चाहे भारत सारा जोड़ें .
लेकिन उससे पहले जोड़ें,
टूटे, बिखरे, छिटके दिल .
नवयुग के नवराष्ट्र  यज्ञ में,
बच्चा-बच्चा होगा शामिल .

ऊँच-नीच का रंग-रूप का,
भेद भूल करें काम नए.
हर भारतवासी जन को,
एक दीपक सा बनना होगा .
पहले खुद के भीतर का ही,
अँधियारा हरना होगा .
जिन्हें प्रकाशित करना है,
अपनों का जीवन .
उन्हें सत्य की ज्वाला में,
हर एक पल जलना होगा .
दिव्य पराक्रम से ही होंगे,
सृजन नए, निर्माण नए.

लाल हैं हम भारत-माता के,
अलग कभी ना हो सकते .
सब मिल देंगे माता को,
रत्न नए परिधान नए .
कोटि-कोटि जन मिलजुल छेड़ें,
एकता के अभियान नए.....


गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

मुझे डर है... संध्या शर्मा

दरअसल मैं रेगिस्तान में ही पैदा हुई हूँ 
और तुम
ले जा रहे हो मुझे सागर में
मुझे प्यास नहीं कोई चाह नहीं
हाँ डर है...!
कहीं सागर निगल न ले
मेरे अस्तित्व को

ध्यान से देखो मुझे मैं तो पत्थर हूँ
और तुम
ले जा रहे हो मुझे हिमशिखर पर
पारस बनने की चाह नहीं
हाँ डर है 
कहीं पिघल ना जाऊं 
मोम बनकर...!

मैं तो एक बूँद हूँ, नन्ही सी ओस की
और तुम
बनाना चाहते हो बदली
नहीं घिरना चाहती झूमकर
हाँ डर है
कहीं बरस ना जाऊं
और समा जाऊं धरती में हमेशा के लिए...! 
 


 
 
 

सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

एक देवी हो तुम... संध्या शर्मा


सक्षम / सृजक 
संस्कारों एवं
सृष्टि का आधार
जिम्मेदार/समझदार
प्रकृति का अनमोल उपहार
पालनहार
मौन/प्राण/ अपान
ममता/सत्य 
ललकार
क्षमताओं से परिचित
संदेहों से प्रभावित
अधिकारों से वंचित
नारी नहीं
देवी हो तुम

बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

अपना वज़ूद बताओ... संध्या शर्मा


 सीने में गर है तुम्हारे दिल
तो दर्द से तड़पकर दिखाओ 

गर तुम्हे कोई इंसा कहे तो
मन में दर्द-ए-अहसास जगाओ

किसी ठोकर से गर टूटे दिल
नगमा मोहब्बत का सुनाओ

नफ़रत-ए-खंजर लिए लोगों को
अपनी ठोकरों से धूल चटाओ 

गर अमन से बना सको तुम 
इस जहान को जन्नत बनाओ 

है दम अगर डूबने से पहले 
मझधार से कश्ती ले आओ