बुधवार, 28 नवंबर 2012

ये सुंदरियां...संध्या शर्मा

http://24.media.tumblr.com/tumblr_m56vo0IpKz1roady0o1_1280.jpgअभिव्यक्ति की सुंदरियां 
भावों के कालजयी मंच पर
हंसती, मुस्कुराती,गाती
ख़ुशी से थिरक रही हैं
मंद, तेज़ चाल चलती
शब्दों की रंग बिरंगी
चूनर पहन इठलाती
करती फिर रही हैं
प्रतिभा का प्रदर्शन 
रूप का जादू दिखाती
सजीली मुस्कान लिए
आभार प्रकट करती...

हमारे मन की व्याकुलता
झंझावातों की तपिश
नयनो में उमड़ता
अस्तित्व का ज्वार
झूठी प्रसंशा से भरी
करतल ध्वनियाँ
इतनी पीड़ा के घाव
उनका ठाठ-बाट
ऐश्वर्य-वैभव सब कुछ
बनाये रखेगा
क्या उनका भी हृदय
हो जायेगा विह्वल
द्रवित मन बचा सकेगा
उनकी यह सुन्दरता...

क्या तब भी ये सुंदरियां
बाहर से जैसी दिखती है
अन्दर भी वैसी ही होंगी ?????

मंगलवार, 13 नवंबर 2012

एक दीपावली ऐसी भी ... संध्या शर्मा

दीवाली सभी के लिए आती है बिना किसी भेद-भाव के, रोजी-मजूरी करने वाला हो या अरबपति-खरबपति सभी लक्ष्मी जी को ध्याते हैं। इस कमरतोड़ महंगाई के दौर में सब अपनी-अपनी क्षमता के हिसाब से दीवाली मनाते हैं, फर्क इतना है कि किसी के घर में हजार दीयों की रौशनी होती है तो कोई मन का एक दीप ही जलाता है. किसी की दीवाली मनती है तो किसी का दिवाला निकलता है। खैर जैसे भी हो इस महंगाई के दौर में मन का दीप जलाएं, अंतर्मन जग-मग हो ऐसी मने दीवाली .... आप  सभी को दीपावली की ढेरो शुभकामनायें.....

 http://farm3.static.flickr.com/2617/4102334582_6620e7a2b4.jpg

ज़िंदगी सब कुछ सिखा देती है इंसान को
कितना सही कहा है न कहने वाले ने
एक नन्हा सा आठ साल का बच्चा
दिन भर जिसके हाथ में होते थे
बिस्किट और चिप्स के पैकेट
जब उसके पिता जीवित थे
पिछले कुछ दिनों से देख रही हूँ
उन्ही नन्हे हाथों में ब्रश
पूरे घर को पुताई करके
संवारा सजाया उसने
लेकिन आज जो देखा
मन और आँखे दोनों भर गए
उसकी बालकनी पर दिखाई दी
छोटी सी रंग-बिरंगी लड़ी
पहली नज़र में आभास हुआ
शायद रंगीन बल्ब की झालर है
मन खुश हुआ था देखकर
सोचा चलो अच्छा है
इसबार सबसे पहले रौशन हो गया
इस नन्हे का छोटा सा घर
कुछ काम से छत पर गई
ध्यान गया उस रंगीन लड़ी पर
वह रंगीन बल्ब की झालर नहीं
रंगीन धागों की छोटी सी तोरण थी
शायद गणेशोत्सव से संभालकर रखी थी उसने
 कितनी बड़ी सोच है ना नन्ही सी जान की
ख्वाब है रंगीन भी हैं रौशनी नहीं तो क्या
आज नहीं तो कल होगा सबेरा
बचकर जायेगा कहाँ....

बुधवार, 7 नवंबर 2012

मेरे कालिदास...संध्या शर्मा

हर बार..........
जब भी कुछ लिखने बैठती हूँ
बहुत कोशिश करती हूँ
तुमको ना लिखूं
फिर भी आ ही जाते हो
तुम कहीं ना कहीं से
तुम्हारे आते ही
छाने लगते है
भावों के मेघ
बरसने लगती हैं,
सुन्दर शीतल
शब्दों की बूँदें
धीरे से इनमे समाकर
दे जाते हो मेरे सूखे शब्दों को
हरियाला सावन 
मेरे जीवन के  मेघदूत
मेरे कालिदास...

शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

' पूर्णस्य पूर्णमादाय '... संध्या शर्मा

( 'पूर्णस्य पूर्णमादाय ' कहने से तात्पर्य यह है की यदि तुम स्वयं इस सत्य की अनुभूति कर सको कि वही ' पूर्ण ' तुम्हारे साथ साथ इस विश्व ब्रह्माण्ड के कण कण में भी प्रविष्ट है तो फिर उस ' पूर्ण ' के बाहर शेष बचा क्या ? इसी को कहा गया - ' पूर्णमेवावशिष्यते '.... ! 'करवा चौथ' के मंगल पावनपर्व पर हार्दिक शुभकामनायें ....)


http://festivals.iloveindia.com/karwa-chauth/pics/karwa-chauth-puja.jpgखूब तुलना हो रही थी
अपने चाँद से ऊपर वाले चाँद की,
सबकी बातें सुनकर
खुद को सँवारने की खातिर
ऊपर वाला चाँद कल रात से
अभी तक नहा रहा है
पूरा निखर के आएगा रात को
लेकिन उसे क्या पता कि
कितना भी क्यों न संवर ले
वह चौथ का चाँद
मेरे पूनम के चाँद के आगे
फिर भी फीका नज़र आएगा.........