मंगलवार, 26 मार्च 2013

होली... संध्या शर्मा

होली के रंग आपके जीवन को नए हर्ष और उल्लास से भर दें. होली की बहुत-बहुत बधाई और ढेर सारी शुभकामनायें ....
(होली खेलें लेकिन जीवन दायिनी अमृत रुपी
जल की हर बूंद का महत्त्व समझें) 




मुट्ठी में रंग
मन में उमंग
कान्हा का प्यार
भीजे सिंगार 
मुरली की तान
ग्वालों का गान
मोहे सुन बावरिया होवन दे,
कान्हा संग होली खेलन दे... 

नीरज फुहार
आनंद अपार
उड़े अबीर गुलाल
अवनि आकाश लाल
गुंजन की माल
मयूर पंख भाल
मोहे श्याम रंग में रंगने दे,
कान्हा संग होली खेलन दे... 

देखो धूम मची
गोपियाँ नाच उठी 
रंगों की कली
खिली गली-गली
फैली सुगंध
बोले बाजूबंद
मोहे रंग केसर को घोलन दे,
कान्हा संग होली खेलन दे...

गुरुवार, 21 मार्च 2013

बिरवा शब्द का.... संध्या शर्मा

संभव है वह भूल जाए
लेकिन मैंने संभाल रखा है
तुम न पहचानो मगर
बेखटके आता-जाता है
मेरी कविताओं में
उसका वह एक शब्द ...
देखना एक न एक दिन
मैं तुम्हारे मन में
रोप जाऊंगी बिरवा
उसी शब्द का
फिर खिलेंगे
तुम्हारे मन के द्वार पर
शब्दों के सुन्दर फूल
जिसकी खुशबू से
तुम्हारा आँगन ही नहीं
पूरा संसार महकेगा
बस तुम विश्वास रखना
मन का द्वार खुला रखना....!

रविवार, 17 मार्च 2013

पहचान... संध्या शर्मा

मेरी ही आँखें
मेरे ही अक्स को
घूरती हैं
अनजान की तरह
वो कुछ शब्द
जो यकीं दिलाते
मुझे मेरे होने का
क्यों नहीं बोलती
कितना मुश्किल है
इनकी ख़ामोशी तोडना
तुम कहते हो
आसान है सब
सच कहूँ....
कुछ भी अजीब नहीं लगता
आदत सी हो गई है
कर भी क्या सकती हूँ
फिर भी कोशिश में हूँ
अपनी ही आँखों में
अपनी पहचान ढूंढ़ने की
याद दिला सकूँ
कौन हूँ ??
जानती हूँ
बदल गई हूँ ....

शनिवार, 9 मार्च 2013

अंतरात्मा... संध्या शर्मा

(1)
 
तू...
चली गई
अच्छा ही हुआ 
रहती तो 
दिल धडकता 
अन्याय के 
विरोध में 
कभी तो 
भड़कता
 
(2)
 
अब
सबकी 
सुनती हूँ 
दबा सकती हूँ 
आवाज़ मन की 
तू होती तो 
हारती 
रोज तुझसे 
तेरा क़र्ज़ 
मैं चुकाती 
 
(3)
 
देख 
कैसी निर्लज्ज हूँ 
तू नहीं है 
फिर भी
बचा रखी हैं 
कुछ साँसे 
बिन तेरे भी 
जीने के लिए 
इस शरीर को 
देती हूँ रोज
थोड़ी-थोड़ी