गुरुवार, 15 अगस्त 2013

लहराओ तिरंगा...

स्वतंत्रता दिवस के पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनायें.....
 
देश का मुकुट हिमालय, सागर माथा अति पावन
गंगा जमना की धरती ये, संस्कृति लोक लुभावन
पुरवाई से महकती माटी,चंदन गंध सी मनभावन
सागर चरण पखारे इसके,झूम झूम के गाता सावन
रंग बिरंगे फ़ूल खिलते हैं,ॠषियों की धरती पावन
वीरों ने धूल चटाई सब को,काल यवन हो या रावन
जन्मे राम कृष्ण हैं यहाँ, धरती है यह अति पावन
अंग्रेजों की घोर गुलामी से, लड़ के आजादी पाई
देश धर्म रक्षा खातिर, वीर शहीदों ने जान गंवाई
स्वतंत्र हुए हम भारत वासी मिल जुल पर्व मनाओ
हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई मिलके तिरंगा लहराओ
देश का मुकुट हिमालय, सागर माथा अति पावन
गंगा जमना की धरती ये, संस्कृति लोक लुभावन

सोमवार, 12 अगस्त 2013

मैं स्कूल कैसे जाऊं ???

कल ऐसी बरसात हुई, हर तरफ सिर्फ पानी ही पानी. नदी के किनारे है मेरा घर. घर की छत का कोना तक दिखाई नहीं दे रहा था. मैंने खुद अपनी आँखों से कई आदमी, जानवर सामान सब कुछ बहते देखा. माँ को घर छोड़ने के वक़्त सिसकते देखा. छोटा भाई जो खुद को सँभालने लायक नहीं है. पानी में रास्ता दिखा रहा था. पिताजी ने दादी को पीठ पर लाद लिया और हमने घर छोड़ दिया. रात भर की बारिश ने सब कुछ भिगो दिया, घर की दीवारें, छत की टीन सबकुछ आँखों के आगे बह रहा था. क्या पकड़ें क्या बह जाने दें?? किसीको भी सूझ ही नहीं रहा था. सामान से जीवन कीमती समझ उसे ही बचा लिए .

इस साल पहली बार पिताजी ने ज्वारी के बदले गेहूं खरीदा था. हमारे लिए स्कूल की नयी पोशाक सिलाई थी, हाँ... माँ को एक रेशमी साडी भी दिलाई थी, जिसे माँ ने मौसी की शादी में पहनने के लिए रखी थी, सब कुछ कीचड में मिल गया. गेहूं का एक दाना तक नहीं बचा . घर में सिर्फ कीचड ही दिखाई दे रहा है. ये देखिये मेरी किताबें, बस्ता कैसे हो गए. आप पूछ रहे थे न वहां भीड़ क्यों है? बंशी काका मर गए हैं सांप काटने से, उन्ही को देख रहे हैं लोग. मजदूरी के लिए अपना परिवार छोड़कर आये थे गाँव से. कल रात भोला काका के साथ शहर गए थे खेती का कुछ सामान खरीदने, वापसी में बाढ़ ने घर नहीं पहुँचने दिया दोनों पेड़ पर चढ़ गए लेकिन मौत ने बंशी काका का पीछा नहीं छोड़ा, पेड़ पर सांप ने डंस लिया उन्हें भोला काका ने गमछे से पेड़ से बाँध दिया था उन्हें। रात भर उनकी लाश के साथ रहने के बाद अभी उतारा है उन्हें वहां से. अब क्या होगा उनके परिवार का.

ना जाने कितनी जानें ले ली इस बाढ़ ने. नंदा चाची का का दो दिन का बच्चा उनकी गोद से छूटकर नदी के पानी में समा गया. वो देखिये कैसे पागलों की तरह अपने बच्चे को पानी में खोज रही हैं.  उधर देखो रमा काकी अपनी दो बेटियों के साथ अभी भी नाले के किनारे खडी काका के आने की राह देख रही है, कल शाम विकराल रूप धरे नाले को पार करने के लिए सबने मना किया था काका को, वे नहीं माने बोले "मेरी पत्नी दोनों बेटियों के साथ अकेले कैसे रहेगी इस बाढ़ में" और चले गए उन्हें हमेशा के लिए अकेला करके.

हरेक घर में बारिश ने अलग-अलग तरह से कहर ढाया है. बारिश तो थम गई है,  बाढ़ का पानी उतर गया. लेकिन हमारी आँखों की बारिश अभी भी थमी नहीं है.हम भूखे बेघर. कुछ भी नहीं बचा हमारे पास. आप कहते हैं मैं खूब  पढूं - लिखूं  अपना भविष्य उज्जवल बनाऊं लेकिन पहले यह तो बताइए ... मैं स्कूल कैसे जाऊं ??