गुरुवार, 19 जून 2014

पहली फुहार...


आई बरखा
गूँजने लगा
बूंदों का संगीत
भीगने लगा
अलसाया मौसम
पहली फुहार के
स्वागत को आतुर
पंख पसारे
मन मयूर
धुल गई
पत्ती-पत्ती
खिल गई
डाली-डाली
कोरी धरती पर
लिखने वाली है
फिर से हरियाली .....

शुक्रवार, 6 जून 2014

सुनहरा लॉकेट.....


जून की तपती उमस भरी शाम उसपर बिजली का गुल होना बैचेनी बढ़ा रहा था लेकिन असली व्याकुलता तो उसे जेब का खाली होना दे रहा था।  कल उसकी लाड़ली बहन का जन्मदिन जो था।  कितना दुःख देगी यह बेरोजगारी भी और कब तक? इसी उधेड़ बुन में कब वह सुनसान सड़क पर पहुँच गया उसे पता ही ना चला.

घुप्प अँधेरे में अचानक किसी मासूम का उससे टकराना और फिर जाग उठा उसके भीतर का शैतान।  मासूम की विनती गिड़गिड़ाहट भी उसमे इंसानियत ना जगा सकी।

चलते - चलते उसका हाथ उस असहाय के गले में पड़ी चैन और लॉकेट पर पड़ा , जिसे तुरंत खींचकर साथ ले आया ।   

घर के सामने इकट्ठी भीड़ को देखकर अनजानी शंका से काँप उठा था वह. छोटी बहन भागती हुई बाहर आई और भैया - भैया  कहते हुए उससे लिपट गई।

बहन के फटे कपडे और शरीर पर खरोंचे देख उसे समझते देर नही लगी , तभी उसके कानों में गूंजने लगी वही आवाज़  .... " भैया छोड़ दो मुझे मैं तुम्हारी छोटी बहन जैसी हूँ"

और फिर उसका ध्यान अपनी बंद मुट्ठी पर गया जिसमे वह ले आया था अपनी प्यारी बहन के लिए एक कीमती उपहार जिसके लॉकेट में  सुनहरे अक्षरों में खुदा था उसकी अपनी लाड़ली बहन का नाम ....!

रविवार, 1 जून 2014

नियती...



नियती घट की
अंतिम बूंदों सी
विदा बेला पर
जीवन रेखा के
समाप्ति काल तक
ऐसे लगी रहेगी
दृष्टि उस द्वारे पर
जैसे कोई मोर
व्याकुल नेत्रों से
बैठ तकता है
घिर-घिर बरसते
रिक्त होते मेघ को
जैसे कोई चातक
प्यासा तरसता है
स्वाति की बूँद को
और ..........!
गुजर जाता है
एक महायुग...