मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

जीवन राग....

उर की अनंत गहराइयों में 
बिन खाद पानी के जन्मे 
बीज होते है स्वप्न
जब बीज है तो पनपेगा
फूलेगा फलेगा 
और आकार लेगा 
विशाल वृक्ष का
जब वृक्ष होगा 
तो घोंसले भी होंगे
जब घोंसले होंगे
चहकेंगें फुदकेंगे पंछी
होगा कलरव गान 
स्वप्न तो स्वप्न होते हैं
परिश्रम और कर्म से सींच
लहलहाना होगा इन्हें 
यदि यथार्थ में सुनना है 
इन पंछियों का खुशियों भरा 
लुभावना जीवन राग...

मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

आशा पल्लव...

याद है तुम्हें ...?
उस नन्हे पौधे को रोपत़े हुए
कितने विश्वास से कहा तुमने 
जब यह दरख्त बन जाएगा 
एैसे फूल खिलेंगे  
जिससे सुवासित हो जाएँगे 
हमारे मन और आत्मा 
उस दिन हम यहीं मिलेंगे
गूँथ दूँगा मैं फूलों को
तुम्हारे जूड़े में 
सुगंध से तृप्त हो जाएगी
सदियों से अतृप्त
दोनो की आत्मा
बाँध देगी हमे  
प्रेम की मज़बूत डोर से 
जिसे थामकर पहुँचना है 
हमे संग-संग चलकर
जीवन के उस छोर तक
जिसके आगे कुछ भी नही 
ख़त्म होगी जहाँ हर सीमा 
उस अंतहीन अनंत की ओर
जहाँ विखंडित हो जाते है अणु
अग्नि, जल, पृथ्वी, आकाश में 
पा लेते हैं अपना मूल स्वरूप 
जहाँ असंभव है हर भेद-विभेद
लो मैं तो आ पहुँची हूँ वहीं 
प्रतीक्षा है उस क्षण की
जब तुम आकर पूर्ण कर दोगे 
यह जीवन यात्रा गाथा .....