शनिवार, 16 जुलाई 2016

बुंदेली लोकगीतों में जल का महत्व... संध्या शर्मा

पृथ्वी का अमृत जल को कहा गया है, अगर जल न हो तो यह वसुंधरा जल जाए। प्राणियों का अस्तित्व ही मिट जाए, इसलिए हमारे पूर्वजों ने जल का हमेशा सत्कार किया, उसकी महत्त्ता एवं उपयोगिता को समझ कर आने वाली पीढीयों को सचेत किया। है। जितने नाम जल के हैं, उससे अधिक उसका उपयोग है। आज बुंदेलखंड क्षेत्र जहाँ जल की कमी से जूझ रहा है वहीं प्राचीन काल में जल महत्व समझकर उसका गुणगाण किया जाता था और लोकगीतों के माध्यम से जन जागृति करने का कार्य भी किया है।  

मध्यप्रदेश की हृदयस्थली बुन्देलखण्ड को चेदि तथा दशार्ण भी कहा जाता है। विष्णु धर्मोत्तर पुराण में “चेद्य नैषधयोः पूर्वे विन्ध्यक्षेत्राच्य पश्चिमे रेवाय मुनयोर्मध्मे युद्ध देश इतीर्यते।” यह श्लोक वर्णित है। दशार्ण अर्थात दश जल वाला या दश दुर्ग भूमि वाला द्धण शब्द दुर्ग भूमौजले च इति यादवः जिस प्रकार पंजाब का नाम पांच नदियों के कारण पड़ा मालूम होता है, उसी प्रकार बुन्देलखण्ड का दशार्ण नाम – धसान, पार्वती, सिन्ध (काली) बेतवा, चम्बल, यमुना, नर्मदा, केन, टौंस और जामनेर इन दस नदियों के कारण संभव हुआ है।


बुन्देली धरा को प्रकृति ने उदारतापूर्वक अनोखी छटा प्रदान की है। यहाँ पग-पग पर कहीं सुन्दर सघन वन और कहीं शस्यश्यामला भूमि दृष्टिगोचर होती है। विन्ध्य की पर्वत श्रेणियाँ यत्र-तत्र अपना सिर ऊँचा किए खड़ी हैं। यमुना, बेतवा, धमान ,केन, नर्मदा आदि कल-कल नादिनी सरितायें उसके भू-भाग को सदा सींचती रहती हैं। शीतल जल से भरे हुए अनेकों सरोवर प्रकृति के सौन्दर्य को सहस्त्रगुणा बढ़ाते हैं। अर्थात यहाँ प्रकृति अपने सहज सुन्दर रूप में अवतरित हुई है। यहाँ की सरिताएं विन्ध्याचल और सतपुड़ा की पर्वत श्रेणियों में जन्मी हैं। कभी चट्टानों में अठखेलियाँ करतीं, कभी घने वनों में आच्छादित इलाकों में विचरण करती हैं और कभी मैदानी भागों से बहती ये नदियाँ आगे बढ़ती हैं।

जल में प्राणदायिनी शक्ति छिपी है, मानव शरीर पाँच तत्वों से मेल से बना है, जिसमे जल का महत्वपूर्ण स्थान है। ताजा जल हमें केवल एक ही स्रोत से मिलता है, वह है वर्षा। झीलें, हिमनद, नदियां, चश्में, कुएँ जल के गौण साधन हैं, और इन्हें भी वर्षा या बर्फ से जल मिलता है। इन साधनों के माध्यम से वर्षा का पानी इकट्ठा हो जाता है। जब वर्षा होती है, तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे अमृत बरस रहा हो और ताप से व्याकुल वसुंधरा हरियाली चूनर ओढ़कर नवयौवना जैसी सज संवर जाती है।

जल को अमृत माना जाता हैl मनुष्य की दैनिक आवश्यकता की पूर्ति हेतु जल की खपत होती है। अर्थात जल ही जीवन है। हमारे लोक कवियों ने अपने गीतों में जल के महत्व को स्वीकारा है। यहाँ के गीतों, गाथाओं, लोकोक्तियों, मुहावरों, कथा-कहानियों में जल के महत्व का वर्णन मिलता है। अगर हम जल के महत्व को जान लें तो जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता को सुलझाने में हम अपना योगदान दे सकेंगे। हमारा कल्याणमय भविष्य इस बात पर टिका है, कि हम उपलब्ध जल के उपयोग में कितने सफल हो सकते हैं- वर्षा ऋतु हमारी नियति का महानाट्य है जिसके अभिनेता होते हैं ‘मेघ’ तभी तो हमारे लोक में मेघों का आवाहन होता है, हमारे देश में मेघोत्सवों, आल्हा, कजरी का आयोजन होता है। 

बुन्देली लोकगीत भी इसमें पीछे नहीं हैं तभी तो वे कहते हैं कि-

रूमक-झुमक चले अईयो रे
साहुन के बदला रे
फाग गीतों में कहा गया है कि -
गह तन गगर कपत तन थर-थर
डरत धरत घट सर पर।
गगरी के लेते ही वह थर-थर काँपती है तथा सिर पर घड़ा रखते हुए डरती है। वह डर को छोड़ती ही नहीं है- क्योंकि पानी भरने में एक पहर का समय लगता है।

कई लोकगीतों में जल के महत्व को इतने सुन्दर ढंग से वर्णित किया गया है, जो अवर्णनीय हैं।
जैसे-
न मारो कांकरिया लाग जेहे
कांकरिया के मारे हमारी गगरिया फूट जेहे
गगरिया के फूटे हमारी चुनरिया भीग जेहे
चुनरिया के भीगे हमारी सासुइया रूठ जेहे
सासुइया के रूठे हमारे बालमवा रूस जेंहे
बलमवा के रूसे हमारो पिहरवा छूट जेहे
इस लोकगीत में जल से भरी गगरिया के फूटने पर प्रिय के रुठने को बड़े ही सहज व शालीन ढंग से दर्शाया गया है। 

तो एक अन्य लोकगीत में माता सीता के जल भरने कुएं पर जाने का वर्णन कुछ इस तरह किया है-
जल भरन जानकी आई हो मोरी केवल माँ
कौन की बहुआ कौन की बिटिया
कौन की नार कहाई हो
मोरी केवल माँ
दशरथ बहुआ, जनक की बिटिया, 
राम की नार कहाई हो मोरी केवल माँ

तो कहीं माँ नर्मदा की तुलना माता-पिता से करते हुए बुंदेलखंडी बम्भोली सुनना अत्यंत कर्णप्रिय लगता है-
नरबदा मैय्या होssss
नरबदा मैया ऐसी मिली रे
ऐसी मिली रे जैसे मिल गए
महतारी और बाप रेssss
नरबदा मैया होssss

एक अन्य प्रसिद्ध परम्परागत बुन्देली विदाई गीत में माता-पिता के दुःख की उपमा सागर और गंगा जल से कुछ इस तरह दी गई है, कि किसी का भी हृदय भावुकता से भरे बिना नही रह पता और आँखें नम होकर बेटी के सुख, सौभाग्य के लिए ईश्वर से प्रार्थना करने लगती हैं -
कच्ची ईंट बाबुल द्वारे न रखियो
बेटी न दइयो परदेस मोरे लाल
कौना के रोए गंगा बहत है
कौना के रोए सागर ताल मोरे लाल
अम्मा के रोए गंगा बहत है
बाबुल के रोए सागर ताल मोरे लाल


अत: जल हमारी अमूल्य धरोहर है। जल के बिना जीवन असम्भव है जल के कारण ही हमारा व प्रत्येक प्राणी का अस्तित्व है जल का संरक्षण हमारा कर्तव्य है और हमें अपने प्रयासों द्वारा अगली पीढी के लिए जल को बचाए रखना है। जल का सही उपयोग करें तथा दुरुपयोग होने से बचाएं। यह जान लेना चाहिए कि जल संरक्षित रहेगा तो धरती पर जीवन रहेगा।

रविवार, 3 जुलाई 2016

युगों के पार...



सच-सच कहना Displaying 20160319_140051.jpg
मेरा-तुम्हारा
कब का रिश्ता है ?
क्यों लगती हो मुझे
इतनी अपनी सी ?
क्यों बुलाती हो मुझे
इतने प्यार से ?
तुम्हारा स्नेहिल 
मौन आमंत्रण 
अनायास ही 
ले जाता हैं मुझे 
युगों के पार 
विकल है मन 
मेरे अंतर में 
जागती कविता
ह्रदय गीतमय 
स्पंदित गुंजित 
धारा बन बहता 
यूँ मिलती हो
जैसे तुम मेरी 
बिछ्ड़ी सखियाँ 
ओ शुक सारिका
कहो आंजना
हे शाल भंजिका
प्यारी रमणिका
मुग्ध करती मुग्धा 
कहो न अभिसारिका....?