मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

ओ गौरैया !

ओ गौरैया !
अब लौट आओ
बदल गया है इंसान
प्रकृति प्रेमी हो गया है
आकर देखो तो ज़रा
इसके कमरे की दीवारें
भरी पड़ी है तुम्हारे चित्र से
ऐसे चित्र
जिनमें तुम हो,
तुम्हारा नीड़ है,
तुम्हारे बच्चे है
सीख ली है इसने
तुम्हारी नाराज़गी से
सर आँखों पर बिठाएगा
तिनका- तिनका संभालेगा
ओ गौरैया !
आ भी जाओ
तुम्हे मिलेगा
तुम्हारे सपनों का संसार !
और तुम
यह सब देखकर
पहले की तरह
खुश हो पाओगी
आँगन - आँगन चहकोगी
बाहर-भीतर भागोगी
तो फुदको आकर
मुँडेर - मुँडेर
बना लो न!
हमारे घर को
तुम्हारा भी घर....